बिहार के किसानों की समस्याओं के समाधान और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रस्तावित किसान सलाहकार समिति का गठन कई वर्षों से ठंडे बस्ते में था। वर्ष 2019 में बमेटी (बिहार कृषि प्रबंधन एवं प्रसार प्रशिक्षण संस्थान), पटना द्वारा जारी निर्देशों के अनुसार इस समिति का गठन जनवरी 2020 तक किया जाना था। लेकिन यह प्रक्रिया समय सीमा को पार करते हुए सितंबर 2020 में जाकर शुरू हुई, जब आत्मा (कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन अभिकरण) के अंतर्गत विभिन्न जिलों में समिति का गठन हुआ।
हालाँकि समिति का ढांचा तैयार हुआ, परंतु इसके सदस्यों को आवश्यक प्रशिक्षण और स्पष्ट कार्यदायित्व नहीं दिए गए। केवल औपचारिक सूचनाएं देकर उन्हें उनकी भूमिका निभाने के लिए छोड़ दिया गया, जिससे वे अपने कर्तव्यों को प्रभावी रूप से समझ और निभा नहीं सके। प्रखंड स्तर पर गठित ये समितियाँ किसानों को उन्नत कृषि तकनीक, बाज़ार की जानकारी और सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए बनाई गई थीं, लेकिन मार्गदर्शन के अभाव में ये निष्क्रिय हो गईं।
शुरुआती प्रयास और विफलता
सितंबर 2020 के बाद 2021 में एक साल का कार्य विस्तार जरूर मिला, परन्तु ठोस कार्ययोजना या नियमित गतिविधियों के अभाव में समितियाँ निष्क्रियता की भेंट चढ़ गईं। 2022 में इस दिशा में कोई विशेष पहल नहीं हुई। परिणामस्वरूप किसानों की समस्याएं लगातार अनसुनी होती रहीं। किसानों ने बार-बार इस समिति को सक्रिय बनाने की माँग की, लेकिन इसका स्थायी और पारदर्शी गठन अब तक नहीं हो सका।
स्वामीनाथन संघर्ष समिति की पहल से हलचल
फरवरी 2023 में अखिल भारतीय स्वामीनाथन संघर्ष समिति के प्रभारी रौशन कुमार ने कृषि विभाग, बमेटी और संबंधित ज़िलों को पत्र भेजकर इस विषय में ठोस कार्रवाई की मांग की। उनकी अपील पर विभाग में कुछ हलचल अवश्य हुई, और किसानों से आवेदन लिए गए। लेकिन प्रक्रिया अधिक समय नहीं चल सकी और अचानक से रोक दी गई, जिससे किसानों में नाराज़गी और अविश्वास पैदा हुआ।
रौशन कुमार ने समिति के कार्यकाल को केवल एक वर्ष तक सीमित रखने की जगह इसे तीन से पाँच वर्ष तक विस्तारित करने की माँग भी की, ताकि दीर्घकालिक सुधार और स्थायित्व सुनिश्चित किया जा सके।
किसान नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया
किसान महासभा के नेता जितेंद्र यादव ने इस मामले में अधिकारियों पर निष्क्रियता और लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि यदि जिम्मेदार अफसर समय पर कदम उठाते, तो आज यह समिति किसानों के लिए मददगार होती। वहीं बीजेपी किसान मोर्चा के संजय सिंह ने भी चिंता जताते हुए कहा कि यह समिति तकनीकी प्रशिक्षण, बाजार जानकारी और योजनाओं के लाभ को किसानों तक पहुँचाने का एक प्रभावशाली माध्यम बन सकती थी।
आत्मा की भूमिका पर भी सवाल
आत्मा योजना का मूल उद्देश्य किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों से जोड़ना और क्षेत्रीय विकास में सहयोग देना है। लेकिन किसान सलाहकार समिति की सुस्त प्रक्रिया ने आत्मा की प्रभावशीलता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। बिना सक्रिय समिति के आत्मा की योजनाएं ज़मीनी स्तर पर असर नहीं दिखा पाईं।
समिति की सम्भावनाएँ और किसानों की उम्मीदें
यदि किसान सलाहकार समितियों का गठन पारदर्शी और व्यावहारिक ढंग से हो, तो इससे किसानों को उत्पादन, विपणन, बीमा, और तकनीकी जानकारी में बड़ा लाभ मिल सकता है। यह समिति फसल चयन, मूल्य निर्धारण, नवाचार और सरकारी योजनाओं की पहुँच सुनिश्चित करने में मार्गदर्शक बन सकती है। स्थानीय स्तर पर किसानों की समस्याओं का समाधान, और उनके जीवनस्तर में सुधार समिति के मुख्य उद्देश्य हो सकते हैं।
15 दिन में कार्रवाई का भरोसा
रौशन कुमार ने जानकारी दी कि हाल की शिकायतों के बाद कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के विस्तार निदेशालय ने इस विषय को गंभीरता से लेते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे 15 दिनों के भीतर सभी लंबित मामलों की समीक्षा कर आवश्यक कार्रवाई करें। इससे किसानों को यह विश्वास जगा है कि वर्षों से लंबित इस समस्या का कोई समाधान निकलेगा।
इससे पहले, 25 अक्टूबर 2024 से 10 जनवरी 2025 तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिलने के कारण रौशन कुमार ने दोबारा विस्तार निदेशालय और आत्मा इकाई को पत्र लिखा था।
अब कृषि विभाग, बिहार ने 4 फरवरी 2025 को कृषोन्नति योजना के अंतर्गत सब-मिशन ऑन एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन (SMAE) के तहत किसान सलाहकार समिति के गठन व संचालन को लेकर दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं।
बिहार के किसानों की समस्याओं का समाधान तभी संभव है जब स्थानीय स्तर पर प्रभावी समिति सक्रिय हो। किसान सलाहकार समिति को जल्द-से-जल्द पुनः संगठित कर पारदर्शिता, प्रशिक्षण और नियमित कार्यवाही के साथ लागू किया जाए, यही समय की मांग और किसानों की आवाज़ है।