बिहार के जाले प्रखंड अंतर्गत नगरडीह गांव में कृषि विज्ञान केन्द्र की ओर से किसानों के लिए एक दिवसीय ऑफ-कैम्पस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण की अगुवाई कृषि अभियंत्रण वैज्ञानिक ई. निधि कुमारी ने की। कार्यक्रम का मुख्य विषय था, धान की सीधी बुआई में यंत्रों का प्रयोग, कम लागत में अधिक उत्पादन एवं खरपतवार प्रबंधन।
कार्यक्रम का उद्देश्य
प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य किसानों को परंपरागत पद्धति के बजाय वैज्ञानिक तरीकों से धान की खेती के लिए प्रेरित करना था। ई. निधि कुमारी ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के इस दौर में संसाधनों की कमी के बावजूद किसानों को अधिक उत्पादन देना है, ऐसे में धान की सीधी बुआई (Direct Seeding of Rice - DSR) तकनीक एक कारगर समाधान है। यह तकनीक जल, समय और श्रम की 20 प्रतिशत तक बचत करती है और उत्पादन लागत घटाकर आय में वृद्धि करती है।
खेत की तैयारी और समतलीकरण
भूमि का समतलीकरण धान के बीजों के समान वितरण के लिए आवश्यक है, पूर्व फसल के अवशेष और खरपतवार की रोकथाम हेतु ग्लाइफोसेट का छिड़काव करने की सलाह दी गई, 1.5 लीटर ग्लाइफोसेट को 100 लीटर साफ पानी में मिलाकर 1 एकड़ में छिड़कें, साथ में 2,4-डी (2 मिली प्रति लीटर) मिलाने से खरपतवार नियंत्रण और बेहतर हो जाता है।
बीज दर और बुआई की गहराई
मध्यम दानों के लिए 15-20 किग्रा/हेक्टेयर, बड़े दानों के लिए 20-25 किग्रा/हेक्टेयर, बीज गहराई: 2-3 सेंटीमीटर। अधिक गहराई से अंकुरण प्रभावित होता है।
प्रयोग होने वाले यंत्र
जीरो टिल सीड ड्रिल, मल्टी क्रॉप प्लांटर, राइस-व्हीट सीडर, ड्रम सीडर इन यंत्रों को 35 हॉर्स पॉवर तक के छोटे ट्रैक्टरों से भी चलाया जा सकता है।
बुआई का समय और सिंचाई प्रबंधन
मानसून के आगमन से 10-12 दिन पहले बुआई करना उचित रहता है, यदि वर्षा कम हो तो बुआई के तुरंत बाद सिंचाई करें, अधिक वर्षा की स्थिति में पौधों को पानी में डूबने से बचाने के लिए बुआई पहले कर लें ताकि पौधे विकसित हो सकें।
बीजोपचार
बुआई से 10-12 घंटे पूर्व बीजों को पानी में भिगोना चाहिए, फिर उन्हें छाया में सुखाकर बुआई करें, जिससे अंकुरण में तेजी आती है, बीजोपचार से बीजों में जैव-रासायनिक परिवर्तन होते हैं जो पौधे की शुरुआत को सशक्त बनाते हैं।
सही किस्मों का चयन
ऐसे प्रभेद चुनें जिनकी प्रारंभिक बढ़वार तेज हो, जड़ें गहरी हों और जल की आवश्यकता कम हो, यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों के लिए अनुकूल है जहाँ श्रमिकों की कमी है या जल स्रोत सीमित हैं।
फसल की तैयारी और लाभ
सीड ड्रिल द्वारा बुआई करने से खेत की तैयारी और पलेवा में लगने वाला समय बचता है, फसल 10-15 दिन पहले तैयार हो जाती है, जिससे दूसरी फसल लगाने का समय भी मिल जाता है, यह विधि धन, जल, समय और श्रमिक लागत की बचत के साथ-साथ बेहतर उत्पादन की संभावना प्रदान करती है।
प्रतिभागियों की भागीदारी
इस कार्यक्रम में 35 महिला कृषकों और 4 पुरुष किसानों ने भाग लिया। सभी प्रतिभागियों ने वैज्ञानिक विधियों की जानकारी को उपयोगी बताया और अपने-अपने खेतों में इस तकनीक को अपनाने की इच्छा जताई।
ई. निधि कुमारी ने किसानों से अपील की कि वे आधुनिक तकनीकों को अपनाकर खेती को लाभकारी व्यवसाय में बदलें। उन्होंने भरोसा दिलाया कि कृषि विज्ञान केंद्र की टीम किसानों के साथ कदम से कदम मिलाकर कार्य करेगी